श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 21: लक्ष्मण का श्रीराम को बलपूर्वक राज्य पर अधिकार कर लेने के लिये प्रेरित करना तथा श्रीराम का पिता की आज्ञा के पालन को ही धर्म बताना  »  श्लोक 60
 
 
श्लोक  2.21.60 
 
 
न तेन शक्नोमि पितु: प्रतिज्ञा-
मिमां न कर्तुं सकलां यथावत्।
स ह्यावयोस्तात गुरुर्नियोगे
देव्याश्च भर्ता स गतिश्च धर्म:॥ ६०॥
 
 
अनुवाद
 
  इसलिए मैं पिता की सम्पूर्ण प्रतिज्ञा को यथावत् पालन करने से मुँह नहीं मोड़ सकता। हे लक्ष्मण! वे हमारे दोनों के ही गुरु हैं जो आज्ञा देने में समर्थ हैं और हे माता! वे आपके पति, गति और धर्म हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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