अहं हि ते लक्ष्मण नित्यमेव
जानामि भक्तिं च पराक्रमं च।
मम त्वभिप्रायमसंनिरीक्ष्य
मात्रा सहाभ्यर्दसि मा सुदु:खम्॥ ५६॥
अनुवाद
लक्ष्मण, मैं जानता हूँ कि तुम हमेशा से मुझमें भक्ति रखते हो और तुम्हारा पराक्रम कितना महान है, यह भी मुझसे छिपा नहीं है। परंतु, तुम मेरी इच्छा को न समझकर माता के साथ मिलकर मुझे पीड़ा दे रहे हो। इस तरह मुझे अत्यधिक दुःख में मत डालो।