श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 21: लक्ष्मण का श्रीराम को बलपूर्वक राज्य पर अधिकार कर लेने के लिये प्रेरित करना तथा श्रीराम का पिता की आज्ञा के पालन को ही धर्म बताना  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  2.21.12 
 
 
प्रोत्साहितोऽयं कैकेय्या संतुष्टो यदि न: पिता।
अमित्रभूतो नि:सङ्गं वध्यतां वध्यतामपि॥ १२॥
 
 
अनुवाद
 
  यदि कैकेयी के बहकावे में आकर हमारे पिता हमारे प्रति प्रसन्न हैं और हमारे शत्रु बन गए हैं, तो हमें भी अपने मोह-ममता को त्यागकर उन्हें कैद कर लेना चाहिए या मार डालना चाहिए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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