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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 20: राजा दशरथ की अन्य रानियों का विलाप, श्रीराम का कौसल्याजी को अपने वनवास की बात बताना
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श्लोक 41
श्लोक
2.20.41
त्वयि संनिहितेऽप्येवमहमासं निराकृता।
किं पुन: प्रोषिते तात ध्रुवं मरणमेव हि॥ ४१॥
अनुवाद
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पिताजी! आपके पास रहने पर भी मैं सौतनों के द्वारा इस प्रकार तिरस्कृत रही हूँ, तो आपके विदेश चले जाने पर मेरी क्या दशा होगी? उस अवस्था में तो मेरी मृत्यु निश्चित है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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