स मातरमुपक्रान्तामुपसंगृह्य राघव:।
परिष्वक्तश्च बाहुभ्यामवघ्रातश्च मूर्धनि॥ २१॥
अनुवाद
राघव जी (श्री राम) ने निकट आई माता कौसल्या को प्रणाम किया और माता कौसल्या ने उन्हें दोनों बाहों से कसकर अपनी छाती से लगा लिया। माता कौसल्या ने बड़े प्यार से श्री राम के सिर को सूंघा और उनका स्वागत किया।