श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 20: राजा दशरथ की अन्य रानियों का विलाप, श्रीराम का कौसल्याजी को अपने वनवास की बात बताना  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  2.20.21 
 
 
स मातरमुपक्रान्तामुपसंगृह्य राघव:।
परिष्वक्तश्च बाहुभ्यामवघ्रातश्च मूर्धनि॥ २१॥
 
 
अनुवाद
 
  राघव जी (श्री राम) ने निकट आई माता कौसल्या को प्रणाम किया और माता कौसल्या ने उन्हें दोनों बाहों से कसकर अपनी छाती से लगा लिया। माता कौसल्या ने बड़े प्यार से श्री राम के सिर को सूंघा और उनका स्वागत किया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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