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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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श्लोक 15
श्लोक
2.20.15
सा क्षौमवसना हृष्टा नित्यं व्रतपरायणा।
अग्निं जुहोति स्म तदा मन्त्रवत् कृतमङ्गला॥ १५॥
अनुवाद
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वह सुन्दर महिला रेशमी वस्त्र पहने हुए बड़े हर्ष के साथ प्रतिदिन व्रत का पालन करती थी और शुभ कार्यों को पूरा करने के पश्चात् मन्त्रों का उच्चारण करके अग्नि में आहुति देती थी।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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