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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
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सर्ग 18: श्रीराम का कैकेयी से पिता के चिन्तित होने का कारण पूछना,कैकेयी का कठोरतापूर्वक अपने माँगे हुए वरों का वृत्तान्त बताना
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श्लोक 15
श्लोक
2.18.15
अतोषयन् महाराजमकुर्वन् वा पितुर्वच:।
मुहूर्तमपि नेच्छेयं जीवितुं कुपिते नृपे॥ १५॥
अनुवाद
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महाराज को नाराज़ करके या उनके आदेशों का पालन न करके उन्हें क्रोधित करने पर मैं एक पल भी जीवित नहीं रहना चाहूँगा।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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