अप्रसन्नमना: किं नु सदा मां प्रति वत्सल:।
विषण्णवदनो दीन: नहि मां प्रति भाषते॥ १२॥
अनुवाद
वह व्यक्ति जो सदैव मुझसे प्रेम करता रहता था, आज उसका मन क्यों अप्रसन्न हो गया है? देखता हूँ, आज वह मुझसे बोल भी नहीं रहा है, उसके चेहरे पर विषाद छाया हुआ है और वह अत्यन्त दुःखी हो रहा है।