श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 17: श्रीराम का राजपथ की शोभा देखते और सुहृदों की बातें सुनते हुए पिता के भवन में प्रवेश  »  श्लोक 3-7h
 
 
श्लोक  2.17.3-7h 
 
 
चन्दनानां च मुख्यानामगुरूणां च संचयै:॥ ३॥
उत्तमानां च गन्धानां क्षौमकौशाम्बरस्य च।
अविद्धाभिश्च मुक्ताभिरुत्तमै: स्फाटिकैरपि॥ ४॥
शोभमानमसम्बाधं तं राजपथमुत्तमम्।
संवृतं विविधै: पुष्पैर्भक्ष्यैरुच्चावचैरपि॥ ५॥
ददर्श तं राजपथं दिवि देवपतिर्यथा।
दध्यक्षतहविर्लाजैर्धूपैरगुरुचन्दनै:॥ ६॥
नानामाल्योपगन्धैश्च सदाभ्यर्चितचत्वरम्।
 
 
अनुवाद
 
  सुरम्य चंदनों के ढेर, अगुरु की सुगंध, उत्तम गंधद्रव्य, अलसी और सन के रेशों से बने कपड़े और रेशमी वस्त्र, अनमोल मोती और श्रेष्ठ स्फटिक रत्न उस विशाल और भव्य राजपथ की शोभा बढ़ा रहे थे। वह मार्ग नाना प्रकार के फूलों और तरह-तरह के खाने-पीने की चीजों से भरा हुआ था। उसके चौराहों की दही, अक्षत, हविष्य, लावा, धूप, अगरबत्ती, चंदन, विभिन्न प्रकार की फूलों की मालाओं और सुगंधित द्रव्यों से निरंतर पूजा की जाती थी। स्वर्गलोक में विराजमान देवराज इंद्र की भांति रथ पर सवार श्री राम ने उस राजपथ को देखा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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