स कक्ष्या धन्विभिर्गुप्तास्तिस्रोऽतिक्रम्य वाजिभि:।
पदातिरपरे कक्ष्ये द्वे जगाम नरोत्तम:॥ २०॥
अनुवाद
उसने धनुर्धर वीरों द्वारा सुरक्षित महल के तीन द्वारों को घोड़े से जुते रथ से पार कर लिया। इसके बाद, नरोत्तम राम पैदल ही अन्य दो द्वारों को पार कर के आगे बढ़े।