श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 17: श्रीराम का राजपथ की शोभा देखते और सुहृदों की बातें सुनते हुए पिता के भवन में प्रवेश  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  2.17.14 
 
 
यश्च रामं न पश्येत्तु यं च रामो न पश्यति।
निन्दित: सर्वलोकेषु स्वात्माप्येनं विगर्हते॥ १४॥
 
 
अनुवाद
 
  उस समय जो श्रीराम को नहीं देखता था, या जिसे श्रीराम नहीं देखते थे, उसकी निंदा समस्त लोकों में की जाती थी और उसकी अपनी अंतरात्मा भी उसका तिरस्कार करती थी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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