श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 15: सुमन्त्र का राजा की आज्ञा से श्रीराम को बुलाने के लिये उनके महल में जाना  »  श्लोक 45
 
 
श्लोक  2.15.45 
 
 
उपस्थितैरञ्जलिकारिभिश्च
सोपायनैर्जानपदैर्जनैश्च।
कोटॺा परार्धैश्च विमुक्तयानै:
समाकुलं द्वारपदं ददर्श॥ ४५॥
 
 
अनुवाद
 
  उस भवन के द्वार पर पहुँचते ही सुमन्त्र ने देखा कि श्रीराम की वंदना के लिए हाथ जोड़े हुए जनपदवासी उपस्थित थे। वे सभी अपनी सवारी से उतरकर हाथों में नाना प्रकार के उपहार लेकर खड़े थे। इनकी संख्या करोड़ों और परार्ध थी, जिसके कारण वहाँ बहुत बड़ी भीड़ लग गई थी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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