श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 15: सुमन्त्र का राजा की आज्ञा से श्रीराम को बुलाने के लिये उनके महल में जाना  »  श्लोक 44
 
 
श्लोक  2.15.44 
 
 
महेन्द्रसद्मप्रतिमं च वेश्म
रामस्य रम्यं मृगपक्षिजुष्टम्।
ददर्श मेरोरिव शृङ्गमुच्चं
विभ्राजमानं प्रभया सुमन्त्र:॥ ४४॥
 
 
अनुवाद
 
  श्रीराम का वह भवन इन्द्र के सदन की शोभा को भी मात कर रहा था। मृग और पक्षियों से घिरा होने के कारण उसकी रमणीयता और भी बढ़ गई थी। सुमन्त्र ने उस भवन को देखा। वह अपनी प्रभा से प्रकाशित होने वाले मेरु पर्वत के ऊँचे शिखर की भाँति सुशोभित हो रहा था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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