श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 15: सुमन्त्र का राजा की आज्ञा से श्रीराम को बुलाने के लिये उनके महल में जाना  »  श्लोक 40
 
 
श्लोक  2.15.40 
 
 
स वाजियुक्तेन रथेन सारथि:
समाकुलं राजकुलं विराजयन्।
वरूथिना राजगृहाभिपातिना
पुरस्य सर्वस्य मनांसि हर्षयन्॥ ४०॥
 
 
अनुवाद
 
  सारथि सुमन्त्र रथ में सवार होकर राजभवन की ओर बढ़े। उनका रथ लोहे की चद्दरों से बना हुआ था और उसमें अच्छे घोड़े जुते हुए थे। रथ के चारों ओर लोगों की भीड़ थी और वे सुमन्त्र के रथ को देखकर खुश हो रहे थे। सुमन्त्र का रथ राजमार्ग से गुजरते हुए पूरे नगर के लोगों का मन आनंदित कर रहा था। अंततः सुमन्त्र श्रीराम के भवन के पास पहुँचे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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