श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 15: सुमन्त्र का राजा की आज्ञा से श्रीराम को बुलाने के लिये उनके महल में जाना  »  श्लोक 32
 
 
श्लोक  2.15.32 
 
 
काञ्चनप्रतिमैकाग्रं मणिविद्रुमतोरणम्।
शारदाभ्रघनप्रख्यं दीप्तं मेरुगुहासमम्॥ ३२॥
 
 
अनुवाद
 
  उस मंदिर का मुख्य द्वार सोने की देव-प्रतिमाओं से सुशोभित था। द्वार के बाहर मणि और मूंगे जड़े हुए थे। पूरा मंदिर शरद ऋतु के बादलों की तरह सफेद रंग से चमक रहा था और मेरु पर्वत की गुफाओं की तरह कांतिमान था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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