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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 13: राजा का विलाप और कैकेयी से अनुनय-विनय
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श्लोक 23
श्लोक
2.13.23
मम रामस्य लोकस्य गुरूणां भरतस्य च।
प्रियमेतद् गुरुश्रोणि कुरु चारुमुखेक्षणे॥ २३॥
अनुवाद
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"हे सुंदर नितंबों वाली देवी! हे सुंदर मुख और आँखों वाली! यह प्रस्ताव मुझ श्री राम को, सभी प्रजा वर्ग को, गुरुजनों को और भरत को भी प्रिय होगा, इसलिए इसे पूरा करो।"
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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