वेदामृत
Reset
Home
ग्रन्थ
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
श्रीमद् भगवद गीता
______________
श्री विष्णु पुराण
श्रीमद् भागवतम
______________
श्रीचैतन्य भागवत
वैष्णव भजन
About
Contact
श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
»
काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
»
सर्ग 13: राजा का विलाप और कैकेयी से अनुनय-विनय
»
श्लोक 22-23h
श्लोक
2.13.22-23h
प्रसीद देवि रामो मे त्वद्दत्तं राज्यमव्ययम्॥ २२॥
लभतामसितापाङ्गे यश: परमवाप्स्यसि।
अनुवाद
play_arrowpause
पाखण्डी, विकर्मी, विडाल-व्रतवाले,* दुष्ट, स्वार्थी और बगुला-भक्त लोगोंका वाणीसे भी आदर न करे॥ १०१॥
Connect Form
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
© copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.