श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 13: राजा का विलाप और कैकेयी से अनुनय-विनय  »  श्लोक 22-23h
 
 
श्लोक  2.13.22-23h 
 
 
प्रसीद देवि रामो मे त्वद्दत्तं राज्यमव्ययम्॥ २२॥
लभतामसितापाङ्गे यश: परमवाप्स्यसि।
 
 
अनुवाद
 
  पाखण्डी, विकर्मी, विडाल-व्रतवाले,* दुष्ट, स्वार्थी और बगुला-भक्त लोगोंका वाणीसे भी आदर न करे॥ १०१॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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