श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 13: राजा का विलाप और कैकेयी से अनुनय-विनय  »  श्लोक 16-17h
 
 
श्लोक  2.13.16-17h 
 
 
सदैवोष्णं विनि:श्वस्य वृद्धो दशरथो नृप:॥ १६॥
विललापार्तवद् दु:खं गगनासक्तलोचन:।
 
 
अनुवाद
 
  बूढ़े राजा दशरथ निरंतर गरम उच्छ्वास लेते हुए आकाश की ओर दृष्टि लगाए हुए दुख से कराहते हुए विलाप करने लगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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