श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 13: राजा का विलाप और कैकेयी से अनुनय-विनय  »  श्लोक 13-14h
 
 
श्लोक  2.13.13-14h 
 
 
नृशंसे पापसंकल्पे रामं सत्यपराक्रमम्।
किं विप्रियेण कैकेयि प्रियं योजयसे मम॥ १३॥
अकीर्तिरतुला लोके ध्रुवं परिभविष्यति।
 
 
अनुवाद
 
  नृशंस पापिनी कैकेयी! तुम्हारा हृदय पत्थर जैसा कठोर है और तुम्हारे विचार सदैव पापमय रहते हैं। श्रीराम सत्य और पराक्रम के अवतार हैं और वे मुझे अत्यंत प्रिय हैं। तुम मुझे उनसे दूर करने पर क्यों तुली हुई हो? यदि तुम ऐसा करती हो, तो निश्चय ही तुम्हारी बदनामी ऐसी फैलेगी कि संसार में इसकी कोई तुलना नहीं होगी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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