श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 12: महाराज दशरथ की चिन्ता, विलाप, कैकेयी को फटकारना, समझाना और उससे वैसा वर न माँगने के लिये अनुरोध करना  »  श्लोक 61
 
 
श्लोक  2.12.61 
 
 
किं नु दु:खमलीकं वा मयि रामे च पश्यसि।
न कथंचिदृते रामाद् भरतो राज्यमावसेत्॥ ६१॥
 
 
अनुवाद
 
  तुम मुझमें और श्री राम में क्या दुखदायक या अप्रिय व्यवहार देख रही हो (कि इस तरह नीच कर्म करने पर उतर आई हो); श्री राम के बिना भरत किसी भी तरह से राज्य लेना स्वीकार नहीं करेंगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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