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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
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सर्ग 12: महाराज दशरथ की चिन्ता, विलाप, कैकेयी को फटकारना, समझाना और उससे वैसा वर न माँगने के लिये अनुरोध करना
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श्लोक 54
श्लोक
2.12.54
स देव्या व्यवसायं च घोरं च शपथं कृतम्।
ध्यात्वा रामेति नि:श्वस्य च्छिन्नस्तरुरिवापतत्॥ ५४॥
अनुवाद
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देवी कैकेयी के दृढ़ निश्चय और उनकी प्रतिज्ञा को याद करते ही राम लम्बी साँस खींचते हुए वृक्ष की भाँति गिर पड़े और बोले, "हा राम!"
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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