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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
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सर्ग 12: महाराज दशरथ की चिन्ता, विलाप, कैकेयी को फटकारना, समझाना और उससे वैसा वर न माँगने के लिये अनुरोध करना
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श्लोक 53
श्लोक
2.12.53
तां हि वज्रसमां वाचमाकर्ण्य हृदयाप्रियाम्।
दु:खशोकमयीं श्रुत्वा राजा न सुखितोऽभवत्॥ ५३॥
अनुवाद
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कैकयी की वह वज्र के समान कठोर एवं दुख-शोक से भरी वाणी सुनकर राजा को बड़ा दुःख हुआ। उनके सुख और शांति छिन गई।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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