श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 12: महाराज दशरथ की चिन्ता, विलाप, कैकेयी को फटकारना, समझाना और उससे वैसा वर न माँगने के लिये अनुरोध करना  »  श्लोक 43
 
 
श्लोक  2.12.43 
 
 
शैब्य: श्येनकपोतीये स्वमांसं पक्षिणे ददौ।
अलर्कश्चक्षुषी दत्त्वा जगाम गतिमुत्तमाम्॥ ४३॥
 
 
अनुवाद
 
  राजा शैब्य ने बाज और कबूतर के बीच हुए झगड़े में कबूतर के प्राण बचाने की प्रतिज्ञा को पूर्ण करने के लिए अपने शरीर से मांस काटकर उसे बाज नामक पक्षी को दे दिया था। इसी प्रकार, राजा अलर्क ने एक अंधे ब्राह्मण को अपनी दोनों आंखें दान करके परम उत्तम गति प्राप्त की थी।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.