श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 12: महाराज दशरथ की चिन्ता, विलाप, कैकेयी को फटकारना, समझाना और उससे वैसा वर न माँगने के लिये अनुरोध करना  »  श्लोक 34
 
 
श्लोक  2.12.34 
 
 
मम वृद्धस्य कैकेयि गतान्तस्य तपस्विन:।
दीनं लालप्यमानस्य कारुण्यं कर्तुमर्हसि॥ ३४॥
 
 
अनुवाद
 
  केकयी! मैं वृद्ध हो गया हूँ। मेरा अंत निकट है। मेरी स्थिति दयनीय हो रही है और मैं दीन होकर तुम्हारे सामने गिड़गिड़ा रहा हूँ। तुम्हें मुझ पर दया करनी चाहिए।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.