न स्मराम्यप्रियं वाक्यं लोकस्य प्रियवादिन:।
स कथं त्वत्कृते रामं वक्ष्यामि प्रियमप्रियम्॥ ३२॥
अनुवाद
श्रीराम हमेशा सभी लोगों से प्रिय वचन बोलते हैं। मुझे तो यह याद नहीं पड़ता कि उन्होंने कभी किसी को अप्रिय वचन कहा हो। ऐसे सर्वप्रिय राम को मैं तेरे लिए कोई अप्रिय बात कैसे कह सकता हूँ?