श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 12: महाराज दशरथ की चिन्ता, विलाप, कैकेयी को फटकारना, समझाना और उससे वैसा वर न माँगने के लिये अनुरोध करना  »  श्लोक 32
 
 
श्लोक  2.12.32 
 
 
न स्मराम्यप्रियं वाक्यं लोकस्य प्रियवादिन:।
स कथं त्वत्कृते रामं वक्ष्यामि प्रियमप्रियम्॥ ३२॥
 
 
अनुवाद
 
  श्रीराम हमेशा सभी लोगों से प्रिय वचन बोलते हैं। मुझे तो यह याद नहीं पड़ता कि उन्होंने कभी किसी को अप्रिय वचन कहा हो। ऐसे सर्वप्रिय राम को मैं तेरे लिए कोई अप्रिय बात कैसे कह सकता हूँ?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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