श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 12: महाराज दशरथ की चिन्ता, विलाप, कैकेयी को फटकारना, समझाना और उससे वैसा वर न माँगने के लिये अनुरोध करना  »  श्लोक 31
 
 
श्लोक  2.12.31 
 
 
तस्मिन्नार्जवसम्पन्ने देवि देवोपमे कथम्।
पापमाशंससे रामे महर्षिसमतेजसि॥ ३१॥
 
 
अनुवाद
 
  देवी! सीधे स्वभाव और ईश्वर के सामान तेजस्वी श्रीराम में आपको कौन सा दोष दिखाई पड़ता है? आप उनके बारे में अमंगल की बातें क्यों कर रही हैं?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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