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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
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सर्ग 12: महाराज दशरथ की चिन्ता, विलाप, कैकेयी को फटकारना, समझाना और उससे वैसा वर न माँगने के लिये अनुरोध करना
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श्लोक 30
श्लोक
2.12.30
सत्यं दानं तपस्त्यागो मित्रता शौचमार्जवम्।
विद्या च गुरुशुश्रूषा ध्रुवाण्येतानि राघवे॥ ३०॥
अनुवाद
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श्रीराम में सत्य, दान, तप, त्याग, मित्रता, पवित्रता, सरलता, विद्या और गुरु-शुश्रूषा जैसे सभी सद्गुण अटल रूप से विद्यमान हैं। ये गुण श्रीराम के चरित्र की आधारशिला हैं और उनके जीवन में सदैव स्पष्ट रूप से परिलक्षित होते हैं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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