श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 12: महाराज दशरथ की चिन्ता, विलाप, कैकेयी को फटकारना, समझाना और उससे वैसा वर न माँगने के लिये अनुरोध करना  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  2.12.24 
 
 
रोचयस्यभिरामस्य रामस्य शुभलोचने।
तव शुश्रूषमाणस्य किमर्थं विप्रवासनम्॥ २४॥
 
 
अनुवाद
 
  हे सुन्दर नेत्रों वाली कैकेयी! जो श्रीराम सदैव तुम्हारी सेवा और शुश्रूषा में लगे रहते हैं, उन्हें देश से निकालने की इच्छा तुम्हारे मन में क्यों उठ रही है? श्रीराम तो तुम्हारे लिए बहुत ही प्रिय और प्रिय हैं, फिर तुम उन्हें देश से निकालना क्यों चाहती हो?
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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