श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 12: महाराज दशरथ की चिन्ता, विलाप, कैकेयी को फटकारना, समझाना और उससे वैसा वर न माँगने के लिये अनुरोध करना  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  2.12.18 
 
 
तच्छ्रुत्वा शोकसंतप्ता संतापयसि मां भृशम्।
आविष्टासि गृहे शून्ये सा त्वं परवशं गता॥ १८॥
 
 
अनुवाद
 
  श्रीराम के अभिषेक की खबर सुनकर तुम शोक से भर गई हो और मुझे भी बहुत दुख दे रही हो। ऐसा लगता है कि इस सुनसान घर में तुम पर भूत-प्रेत का साया है, इसलिए तुम बेबस होकर ऐसी बातें कह रही हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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