श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 12: महाराज दशरथ की चिन्ता, विलाप, कैकेयी को फटकारना, समझाना और उससे वैसा वर न माँगने के लिये अनुरोध करना  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  2.12.17 
 
 
स मे ज्येष्ठसुत: श्रीमान् धर्मज्येष्ठ इतीव मे।
तत् त्वया प्रियवादिन्या सेवार्थं कथितं भवेत्॥ १७॥
 
 
अनुवाद
 
  तुम पहले कहती थी कि "श्रीराम मेरे बड़े बेटे हैं, वे धर्म के आचरण में भी सबसे बड़े हैं!" पर अब पता चला कि तुम ऊपरी तौर पर मीठी-मीठी बातें करती थीं और वो बात तुमने श्रीराम से सिर्फ अपनी सेवा करवाने के लिए ही कही होगी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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