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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
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सर्ग 118: सीता-अनसूया-संवाद, अनसूया का सीता को प्रेमोपहार देना तथा अनसूया के पूछने पर सीता का उन्हें अपने स्वयंवर की कथा सुनाना
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श्लोक 5
श्लोक
2.118.5
यां वृत्तिं वर्तते राम: कौसल्यायां महाबल:।
तामेव नृपनारीणामन्यासामपि वर्तते॥ ५॥
अनुवाद
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महाबली श्री राम अपनी माता कौसल्या के प्रति जैसा व्यवहार करते हैं, ठीक वैसा ही व्यवहार महाराज दशरथ की अन्य रानियों के साथ भी करते हैं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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