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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
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सर्ग 118: सीता-अनसूया-संवाद, अनसूया का सीता को प्रेमोपहार देना तथा अनसूया के पूछने पर सीता का उन्हें अपने स्वयंवर की कथा सुनाना
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श्लोक 10
श्लोक
2.118.10
सावित्री पतिशुश्रूषां कृत्वा स्वर्गे महीयते।
तथावृत्तिश्च याता त्वं पतिशुश्रूषया दिवम्॥ १०॥
अनुवाद
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देखो सत्यवान की पत्नी सावित्री अपने पति की सेवा करके स्वर्गलोक में पूजनीय हुई हैं। उसी प्रकार आप (अनसूया देवी) ने भी अपने पति की सेवा की है, जिसके प्रभाव से आपने स्वर्गलोक में स्थान पाया है।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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