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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
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सर्ग 118: सीता-अनसूया-संवाद, अनसूया का सीता को प्रेमोपहार देना तथा अनसूया के पूछने पर सीता का उन्हें अपने स्वयंवर की कथा सुनाना
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श्लोक 1
श्लोक
2.118.1
सा त्वेवमुक्ता वैदेही त्वनसूयानसूयया।
प्रतिपूज्य वचो मन्दं प्रवक्तुमुपचक्रमे॥ १॥
अनुवाद
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तपस्विनी अनसूया के इस प्रकार उपदेश देने पर किसी के प्रति दोषदृष्टि न रखने वाली विदेहराज की राजकुमारी सीता ने उनके द्वारा कहे गए वचनों का भरपूर सम्मान किया और फिर पूरे विनम्रतापूर्वक धीरे-धीरे इस प्रकार कहना आरम्भ किया—।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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