श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 114: भरत के द्वारा अयोध्या की दुरवस्था का दर्शन तथा अन्तःपुर में प्रवेश करके भरत का दुःखी होना  »  श्लोक 25-26h
 
 
श्लोक  2.114.25-26h 
 
 
नहि राजत्ययोध्येयं सासारेवार्जुनी क्षपा।
कदा नु खलु मे भ्राता महोत्सव इवागत:॥ २५॥
जनयिष्यत्ययोध्यायां हर्षं ग्रीष्म इवाम्बुद:।
 
 
अनुवाद
 
  वर्षा के समय में चाँदनी की रात भी सुहावनी नहीं लगती, उसी प्रकार आँसुओं से भीगी हुई अयोध्या भी खूबसूरत नहीं लग रही है। अब कब मेरे भाई अयोध्या में आएँगे और अपने आने से सभी के दिलों को खुश कर देंगे, जैसे गर्मियों के मौसम में दिखने वाले बादल खुशी लाते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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