श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 114: भरत के द्वारा अयोध्या की दुरवस्था का दर्शन तथा अन्तःपुर में प्रवेश करके भरत का दुःखी होना  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  2.114.17 
 
 
सहसा युद्धशौण्डेन हयारोहेण वाहिताम्।
निहतां प्रतिसैन्येन वडवामिव पातिताम्॥ १७॥
 
 
अनुवाद
 
  युद्धभूमि में जिस घोड़ी पर एक कुशल घुड़सवार सवार हो और उसे दुश्मन की सेना अचानक मार गिरा दे, ऐसी घोड़ी की स्थिति उस समय अयोध्या की थी (कैकेयी की साजिश के कारण उसके शासक राजा का स्वर्गवास हो गया था और युवराज को वनवास जाना पड़ा था)।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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