श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 114: भरत के द्वारा अयोध्या की दुरवस्था का दर्शन तथा अन्तःपुर में प्रवेश करके भरत का दुःखी होना  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  2.114.15 
 
 
वृक्णभूमितलां निम्नां वृक्णपात्रै: समावृताम्।
उपयुक्तोदकां भग्नां प्रपां निपतितामिव॥ १५॥
 
 
अनुवाद
 
  उस पुर का हाल उस मंडप के समान था, जिसके खंभे टूट गए हों, नींव टूट गई हो, ज़मीन नीचे गिर गई हो, पानी ख़त्म हो गया हो और पानी रखने के बर्तन टूट-फूटकर हर तरफ़ बिखरे हों।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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