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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
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सर्ग 114: भरत के द्वारा अयोध्या की दुरवस्था का दर्शन तथा अन्तःपुर में प्रवेश करके भरत का दुःखी होना
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श्लोक 11
श्लोक
2.114.11
सहसाचरितां स्थानान्महीं पुण्यक्षयाद् गताम्।
संहृतद्युतिविस्तारां तारामिव दिवश्च्युताम्॥ ११॥
अनुवाद
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सहसा अपने पुण्य-क्षय के कारण अपने स्थान से पृथ्वी पर आ गिरी हुई, इसलिए जिसकी विस्तृत कांति क्षीण हो गई हो, आकाश से गिरी हुई तारे की तरह अयोध्या अप्रतिष्ठित हो गई थी।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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