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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
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सर्ग 114: भरत के द्वारा अयोध्या की दुरवस्था का दर्शन तथा अन्तःपुर में प्रवेश करके भरत का दुःखी होना
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श्लोक 1
श्लोक
2.114.1
स्निग्धगम्भीरघोषेण स्यन्दनेनोपयान् प्रभु:।
अयोध्यां भरत: क्षिप्रं प्रविवेश महायशा:॥ १॥
अनुवाद
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प्रभु भरत अपने घंटों की मधुर और गहरी आवाज से युक्त रथ पर बैठकर शीघ्र ही अयोध्या में प्रवेश कर गए।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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