श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 110: वसिष्ठजी का ज्येष्ठ के ही राज्याभिषेक का औचित्य सिद्ध करना और श्रीराम से राज्य ग्रहण करने के लिये कहना  »  श्लोक 37
 
 
श्लोक  2.110.37 
 
 
स राघवाणां कुलधर्ममात्मन:
सनातनं नाद्य विहन्तुमर्हसि।
प्रभूतरत्नामनुशाधि मेदिनीं
प्रभूतराष्ट्रां पितृवन्महायश:॥ ३७॥
 
 
अनुवाद
 
  हे महायशस्वी श्रीराम! रघुवंशियों के जो सनातन धर्म हैं, उसे आज नष्ट न करो। बहुत-से देशों से युक्त तथा अनेक रत्नों से परिपूर्ण पृथ्वी का पिता के समान शासन करो।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽयोध्याकाण्डे दशाधिकशततम: सर्ग:॥ ११०॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अयोध्याकाण्डमें एक सौ दसवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ ११०॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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