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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 2: अयोध्या काण्ड
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सर्ग 110: वसिष्ठजी का ज्येष्ठ के ही राज्याभिषेक का औचित्य सिद्ध करना और श्रीराम से राज्य ग्रहण करने के लिये कहना
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श्लोक 16
श्लोक
2.110.16
यस्यैते प्रतिराजान उदपद्यन्त शत्रव:।
हैहयास्तालजङ्घाश्च शूराश्च शशबिन्दव:॥ १६॥
अनुवाद
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जिसके शत्रु रूप में ये प्रतिपक्षी राजा उत्पन्न हुए थे वे हैहय, तालजंघ और शूर शशबिन्दु थे।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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