श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 110: वसिष्ठजी का ज्येष्ठ के ही राज्याभिषेक का औचित्य सिद्ध करना और श्रीराम से राज्य ग्रहण करने के लिये कहना  »  श्लोक 1
 
 
श्लोक  2.110.1 
 
 
क्रुद्धमाज्ञाय रामं तु वसिष्ठ: प्रत्युवाच ह।
जाबालिरपि जानीते लोकस्यास्य गतागतिम्॥ १॥
 
 
अनुवाद
 
  ऋषि वसिष्ठ ने श्रीरामचंद्रजी को रुष्ट जानकर कहा—‘रघुनंदन! ऋषि जाबालि भी यह जानते हैं कि इस लोक के प्राणियों का परलोक में जाना और आना होता रहता है (अतः ये नास्तिक नहीं हैं)॥ १॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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