श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 11: कैकेयी का राजा को दो वरों का स्मरण दिलाकर भरत के लिये अभिषेक और राम के लिये चौदह वर्षों का वनवास माँगना  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  2.11.7 
 
 
यं मुहूर्तमपश्यंस्तु न जीवे तमहं ध्रुवम्।
तेन रामेण कैकेयि शपे ते वचनक्रियाम्॥ ७॥
 
 
अनुवाद
 
  ऐ कैकेयी! जिन्हें दो पल भी न देखने पर मैं निश्चित ही जीवित नहीं रह सकता, ऐसे श्रीराम की शपथ खाकर कहता हूँ कि तुम जो भी कहोगी, मैं उसे पूरा करूँगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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