श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 11: कैकेयी का राजा को दो वरों का स्मरण दिलाकर भरत के लिये अभिषेक और राम के लिये चौदह वर्षों का वनवास माँगना  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  2.11.5 
 
 
अवलिप्ते न जानासि त्वत्त: प्रियतरो मम।
मनुजो मनुजव्याघ्राद् रामादन्यो न विद्यते॥५॥
 
 
अनुवाद
 
  कैकेयी, अपने सौभाग्य पर इतराती हो? क्या तुम नहीं जानती हो कि नरश्रेष्ठ श्रीराम के अलावा कोई भी मनुष्य ऐसा नहीं है जिससे मैं तुमसे अधिक प्रेम करता हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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