श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 11: कैकेयी का राजा को दो वरों का स्मरण दिलाकर भरत के लिये अभिषेक और राम के लिये चौदह वर्षों का वनवास माँगना  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  2.11.4 
 
 
तामुवाच महाराज: कैकेयीमीषदुत्स्मय:।
कामी हस्तेन संगृह्य मूर्धजेषु भुवि स्थिताम्॥ ४॥
 
 
अनुवाद
 
  महाराज दशरथ काम के प्रभाव में थे। कैकेयी की बात सुनकर वे हल्के से मुस्कुराए और पृथ्वी पर पड़ी देवी के केशों को हाथ से पकड़कर उनके सिर को अपनी गोद में रखकर बोले-।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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