श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 11: कैकेयी का राजा को दो वरों का स्मरण दिलाकर भरत के लिये अभिषेक और राम के लिये चौदह वर्षों का वनवास माँगना  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  2.11.22 
 
 
वाङ्मात्रेण तदा राजा कैकेय्या स्ववशे कृत:।
प्रचस्कन्द विनाशाय पाशं मृग इवात्मन:॥ २२॥
 
 
अनुवाद
 
  मृग बहेलिये की आवाज सुनते ही अपने ही विनाश के लिए उसके जाल में फँस जाता है। इसी तरह, कैकेयी के वशीभूत होकर राजा दशरथ ने उस समय से पहले के वरदान-वाक्य को याद करते हुए अपने ही विनाश के लिए प्रतिज्ञा के बंधन में बँध गए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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