श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 11: कैकेयी का राजा को दो वरों का स्मरण दिलाकर भरत के लिये अभिषेक और राम के लिये चौदह वर्षों का वनवास माँगना  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  2.11.20 
 
 
तौ दत्तौ च वरौ देव निक्षेपौ मृगयाम्यहम्।
तवैव पृथिवीपाल सकाशे रघुनन्दन॥ २०॥
 
 
अनुवाद
 
  हे देव और पृथ्वी के राजा, रघुनंदन! आपके द्वारा दिए गए वे दोनों वर मैंने एक धरोहर या निधि के रूप में आपके पास ही रख दिए थे। आज इस समय मैं उन्हीं की खोज करती हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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