श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 11: कैकेयी का राजा को दो वरों का स्मरण दिलाकर भरत के लिये अभिषेक और राम के लिये चौदह वर्षों का वनवास माँगना  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  2.11.10 
 
 
बलमात्मनि पश्यन्ती न विशङ्कितुमर्हसि।
करिष्यामि तव प्रीतिं सुकृतेनापि ते शपे॥ १०॥
 
 
अनुवाद
 
  तुम्हें अपनी शक्ति को देखते हुए भी मुझ पर संदेह नहीं करना चाहिए। मैं अपने पुण्य कर्मों की शपथ लेकर प्रतिज्ञा करता हूँ कि मैं तुम्हारे प्रिय कार्य को अवश्य पूरा करूँगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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