स लब्धमानैर्विनयान्वितैर्नृपै:
पुरालयैर्जानपदैश्च मानवै:।
उपोपविष्टैर्नृपतिर्वृतो बभौ
सहस्रचक्षुर्भगवानिवामरै:॥ ५१॥
अनुवाद
राजा दशरथ सम्मानित सामंत राजाओं, नगर के निवासियों और जनपद के लोगों से घिरे हुए थे। वे ऐसे लग रहे थे जैसे देवताओं के बीच में विराजमान सहस्रनेत्रधारी ईश्वर इंद्र बैठे हों।
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्येऽयोध्याकाण्डे प्रथम: सर्ग:॥ १॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके अयोध्याकाण्डमें पहला सर्ग पूरा हुआ॥ १॥