श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 1: श्रीराम के सद्गुणों का वर्णन, राजा दशरथ का श्रीराम को युवराज बनाने का विचार  »  श्लोक 47
 
 
श्लोक  2.1.47 
 
 
तान् वेश्मनानाभरणैर्यथार्हं प्रतिपूजितान्।
ददर्शालंकृतो राजा प्रजापतिरिव प्रजा:॥ ४७॥
 
 
अनुवाद
 
  उन सबको विभिन्न आभूषणों से सुशोभित कर घर में उचित स्थान दिया गया। उसके बाद राजा दशरथ भी स्वयं को आभूषणों से सजाकर उनसे मिले, जैसे प्रजापति ब्रह्मा प्रजा से मिलते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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