श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 2: अयोध्या काण्ड  »  सर्ग 1: श्रीराम के सद्गुणों का वर्णन, राजा दशरथ का श्रीराम को युवराज बनाने का विचार  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  2.1.4 
 
 
राजापि तौ महातेजा: सस्मार प्रोषितौ सुतौ।
उभौ भरतशत्रुघ्नौ महेन्द्रवरुणोपमौ॥ ४॥
 
 
अनुवाद
 
  महातेजस्वी राजा दशरथ भी परदेश में गये हुए महेन्द्र और वरुण के समान पराक्रमी अपने दोनों पुत्र भरत और शत्रुघ्न का सदा स्मरण किया करते थे। वे अपने पुत्रों के वीरता और पराक्रम से बहुत खुश थे और उन्हें अपने कुल का गौरव मानते थे। राजा दशरथ अपने पुत्रों से बहुत प्यार करते थे और उन्हें हमेशा अपने पास रखना चाहते थे, लेकिन उन्हें राज्य के कर्तव्यों का निर्वाह करना था, इसलिए उन्हें अपने पुत्रों को परदेश में भेजना पड़ा था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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